समर्पण( निर्छलता के साथ भगवान के शरण मे)

समर्पण( निर्छलता के साथ भगवान के शरण मे)

समर्पण

भगवान की चरणों मे पूर्ण समर्पण करना चाहिए माँ द्रोपदी को भगवान पर पूरा भरोसा था धृतराष्ट्र की सभा मे पांडवों और कौरवों के बीच धृतराष्ट्र के आदेश से चौसर का खेलचलरहा है शकुनी धूर्तता से युधिष्ठिर जी अंतिम दाँव माँ द्रोपदी को हार गए  दुःशासन अपनी माँ समान भाभी को बाल पकड़ कर खींच कर राज सभा मे लाया कर्ण के कहने पर दुःशासन ने द्रौपदी को निर्बस्त्र कर रहा है माँ द्रोपदी जी ने असहाय हो सभा मे उपस्थित सबको पुकारा सब चुपरहे  अंत मे महाराज धृतराष्ट्र को पुकारा राज्य का पितातुल्य राजा चुप रहा मानो इस घोर अपराध का सहभागी  है  तब माँ ने जगत पिता को यादकीय भगवान नही आये माँ रजस्वला है नंगी होने से बचने के लिए साड़ी को दांतों से पकड़ा । माँ ने स्थीती को समझते हुये पूर्ण समर्पण करते हुये दोनों हाथ जगतपिता के लिए उठाया माँ असुद्ध है भगवान दयालु हैं भगवान वस्त्रा अवतार ले  माँ के शरीर को लपेट  लिया माँ निर्वस्त्र होने से बचगई 

माँ ने कहा कि आप सर्बत्र हो तो आने में देर क्यू भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम मुझे द्वारिका धीस कह कर पुकारी  मुझे यहाँ से द्वारिका जा कर वहाँ का धीस बनना पड़ा आने में देर हुई यदि जगदीश कहके बुलाती तो देर  नही होती 

राधे राधे



लोगसत्ता न्यूज
Anilkumar Upadhyay

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