आखिर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में क्यों उलझा है चुनावों में ओबीसी आरक्षण का मसला?

आखिर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में क्यों उलझा है चुनावों में ओबीसी आरक्षण का मसला?

नई दिल्ली. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण (OBC Quota) दिए जाने का मसला अभी सुलझता नहीं दिख रहा है. दोनों राज्यों ने अपने स्तर पर ओबीसी को 27% आरक्षण देकर स्थानीय निकायों की चुनाव प्रक्रिया शुरू की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पिछले महीने इस पर दोनों ही राज्यों के आरक्षण संबंधी फैसले को पलट दिया. नतीजे में दोनों राज्यों ने स्थानीय चुनाव की प्रक्रिया ही रोक दी. इसके बाद अब मौजूदा स्थिति ये है कि शीर्ष अदालत में केंद्र, राज्य और अन्य ने समीक्षा याचिकाएं लगाई हैं. इसमें अदालत से उसके फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया है. शीर्ष अदालत आगामी 17 जनवरी को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. इससे पहले एक नजर डाल लेते हैं, इस पूरे मसले पर…
थोड़ा सीधा और बड़ा उलझा सा मसला है. दरअसल, केंद्र और राज्य की सरकारी नौकरियों में अधिकांश स्तरों पर अन्य पिछड़ा वर्गों 27% आरक्षण का लाभ मिलता है. लेकिन चुनावों के मामले में हालात पुरातन व्यवस्था पर आधारित हैं. इसीलिए ओबीसी के लिए 14-15% सीटें ही आरक्षित होती हैं. विभिन्न राज्य अपने स्तर पर इसे बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन उनकी राह में सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच का एक फैसला रोड़ा बन जाता है. उसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से अधिक न किए जाने का सख्त बंदोबस्त है.


लोगसत्ता न्यूज
Anilkumar Upadhyay

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