200 रुपये घूस का सबूत नहीं जुटा पाई मुंबई पुलिस, 24 साल बाद बरी हुआ हेड कॉन्स्टेबल

200 रुपये घूस का सबूत नहीं जुटा पाई मुंबई पुलिस, 24 साल बाद बरी हुआ हेड कॉन्स्टेबल

मुंबई : मुंबई में एक दिलचस्प मामला सामने आया है। एक हेड कॉन्स्टेबल पर 200 रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगा। मामला स्थानीय अदालत में पहुंचा। कोर्ट ने उसे रिश्वत लेने का दोषी ठहराया। कॉन्स्टेबल ने हाई कोर्ट में याचिका की। हाई कोर्ट में 200 रुपये रिश्वत लेने का केस चौबीस साल चला। इन 24 वर्षों में मुंबई पुलिस कॉन्स्टेबल पर रिश्वत लेने का आरोप साबित नहीं कर पाई और बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है।
न्यायमूर्ति प्रकाश नाइक के बेंच ने 31 मार्च को फैसला सुनाया. उन्होंने सोलापुर कोर्ट के 31 मार्च, 1998 के आदेश को रद्द कर दिया। बेंच ने कहा, 'रिश्वत की मांग पर मुकदमा चलाने का मामला संदेह के घेरे में है। सबूतों में विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए, आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है और वह बरी होने का हकदार है।'
केस नागनाथ चावरे का है। उनका निधन हो चुका है। अब उनकी पत्नी और बेटा जिंदा हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार कर ली। चावरे पर लोक सेवक के आपराधिक कदाचार और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत रिश्वत लेने का आरोप लगा था। कोर्ट ने उन्हें दोनों धाराओं पर 1.5 वर्ष और 1 वर्ष की सजा सुनाई गई थी।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि 6 नवंबर, 1994 को मोहोल तालुका के वाघोली गांव के बाबूराव शेंडे पर कुछ लोगों ने हमला किया था। मोहोल पुलिस स्टेशन के एक सब-इंस्पेक्टर ने उसे कामती चौकी पर चावरे तक पहुंचाने के लिए एक सीलबंद लिफाफे में एक नोट दिया। वह 19 नवंबर को चावरे से मिले। चावरे ने उन्हें पत्नी के बयान दर्ज कराने के लिए लाने को कहा। शेंडे ने कहा कि उनके बयान दर्ज होने के बाद, चावरे ने उनके खिलाफ एक मामला दर्ज नहीं करने के लिए 200 रुपये की मांग की। उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संपर्क किया और 21 नवंबर को चावरे फंस गए।


लोगसत्ता न्यूज
Anilkumar Upadhyay

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