कोरोना महामारी ने बड़ी संख्या में लोगों पर मार, कोरोना की मार से ऑटो ड्राइवर्स बेहाल!

कोरोना महामारी ने बड़ी संख्या में लोगों पर मार, कोरोना की मार से ऑटो ड्राइवर्स बेहाल!

कोरोना महामारी ने बड़ी संख्या में लोगों पर मार की है. न सिर्फ उनके स्वास्थ्य पर बल्कि उनकी आर्थिक कमर भी तोड़ कर रख दी है. पुणे के ऑटो रिक्शा वालों को पिछले सवा साल में बार बार लॉकडाउन की वजह से लंबे वक्त तक खाली रहना पड़ा है. सरकार ने ऑटो ड्राइवर्स की मदद के लिए उनके बैंक खातों में 1500-1500 रुपए की रकम भेजी. लेकिन इससे ऑटो ड्राइवर्स को कोई राहत नहीं मिल सकी. बैंकों ने ये रकम या तो उनकी बकाया ईएमआई में काट ली या खाते में न्यूनतम रकम न रखने की पेनल्टी के तौर पर वसूल कर ली. कोरोना काल में करीब छह महीने आटो ड्राइवर्स घऱ पर बैठे रहे. घर का खर्च चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा. बाकी का वक्त उन्होंने जो ऑटो चला कर पैसा कमाया वो कर्ज को उतारने में बीत गया. अप्रैल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य के 12 लाख रजिस्टर्ड ऑटो ड्राइवर्स में हर एक को 1500 रुपए दिए गए. हालांकि ये बहुत छोटी रकम थी लेकिन आटो ड्राइवर्स को उम्मीद बंधी कि इससे ऑटो का टैंक भरवाने या बिजली बिल जैसा छोटा खर्च पूरा किया जा सकेगा.  

हालांकि अब ऑटो ड्राइवर्स को सड़क पर आने की इजाजत मिल गई है लेकिन उन्हें मुश्किल से ही कोई सवारी मिल पाती है. घंटों इसी इंतजार में बीत जाते हैं. कोरोना के खौफ से अब भी घरों से लोग बहुत कम निकल रहे हैं. जो बाहर आ भी रहे हैं वो संक्रमण के डर से पब्लिक ट्रांसपोर्ट से बच रहे हैं. ऑटो ड्राइवर 37 साल के दुर्गेश हलेंडे पुणे के बिबवेवाडी इलाके में ऑटो रिक्शा चला कर परिवार चला रहे हैं. दुर्गेश का अपना ऑटो नहीं है. दिन के भाड़े पर लेकर ऑटो चलाते हैं. सातवीं तक पढ़े दुर्गेश मूल रूप से पुणे जिले के दौंड तहसील के पाटस गाव के रहने वाले हैं. ऑटो रिक्शा चलाने से पहले हाउसकीपिंग और गाड़ियां धोने का काम करते थे. 12 साल पहले ऑटो चलाना शुरू किया.

कोरोना की दस्तक से पहले तक हर दिन 1000 रुपए की कमाई होती थी, सभी खर्च पूरे करने के बाद 700 रुपए घर ले जाते थे. दुर्गेश के मुताबिक कोरोना काल मे बुरा हाल हो गया. रविवार दोपहर को साढ़े तीन बजे तक दुर्गेश सिर्फ 70 रुपए ही कमा पाए थे. दुर्गेश के मुताबिक पिछले तीन दिन से ऐसा ही हाल है. जब राज्य सरकार की ओर से मिली 1500 रुपए की मदद के बारे में पूछा गया तो दुर्गेश ने बताया कि वो पैसा तो ऑटो रिक्शा मालिक के अकाउंट में जमा हो गया. दुर्गेश के 7-7 साल के दो जुड़वा बेटे हैं. कम से कम भी घर में दूध, सब्जी और राशन पर हर दिन 250 रुपए खर्च होते हैं. और भी कई खर्चे हैं. स्कूल फीस देना मुश्किल है इसलिए दोनों बच्चों का इस साल स्कूल में एडमिशन नहीं कराया है. दुर्गेश का कहना है कि हालात सुधरने के बाद जब कमाई ठीक से शुरू हो जाएगी फिर स्कूल में बच्चों का एडमिशन कराने की सोचेंगे. 

दुर्गेश जैसी कहानी ही ऑटो रिक्शा ड्राइवर बशारत अहमदन खांन की है. 42 साल के बशारत के मुताबिक “फिलहाल दिन में 150 से 200 रुपए ही कमाई हो पाती है. पिछले साल मार्च से ही हाल बुरे हैं. अब तक सरकार से कुछ भी नहीं मिला. 1500 रुपए मिलने वाले थे लेकिन पहले ही बैंक में -14000 रुपए निगेटिव बैलेंस है. 1500 रुपए के लिए फॉर्म भरता तो वो पैसे बैंक वाले काट लेते. इसलिए वो फॉर्म ही नहीं भरा.  

बशारत ने बताया कि एक फाइनेंस कंपनी का 25 हजार का लोन था लेकिन हाथ सिर्फ 22200 रुपये ही आए थे. लेकिन अब तक वापस भुगतान 35 हजार रुपए जा चुके हैं. बशारत के मुताबिक उनके पास सारी रसीद हैं. बशारत के परिवार में पत्नी और चार बेटियां हैं. बशारत का कहना है कि “महीने में खर्च 20 हजार रुपए होता है लेकिन कमाई  6 से 7 सात हजार रुपये ही हो रही है, बस दोस्तों से, रिश्तेदारों से , उधार लेकर गुजारा चल रहा है. अभी तक दो से ढाई लाख कर्जा हो गया है. सवारी के इंतजार में हर ऑटो ड्राइवर की आंखें पथरा रही हैं. उनके चेहरे पर एक ही सवाल है कब सब कुछ सामान्य होगा, कब कोरोना का खौफ पूरी तरह खत्म होगा और वो पहले जैसी जिंदगी जी सकेंगे जैसे कि वो 2019 के आखिर तक जीते आ रहे थे. 



लोगसत्ता न्यूज
Anilkumar Upadhyay

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