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बच्चों के भविष्य पर आर्थिक संकट का असर, नहीं भरी फीस तो स्कूलों ने रोकी पढ़ाई
बच्चों के भविष्य पर आर्थिक संकट का असर, नहीं भरी फीस तो स्कूलों ने रोकी पढ़ाई
मुंबई: कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन का असर जहां लोगों की जेब पर पड़ा है, तो वहीं ऐसे कई स्कूल मौजूद हैं, जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई इसलिए रोक दी है, क्योंकि वो फीस नहीं भर पाए. मुंबई के चारकोप इलाके के एक निजी स्कूल के बाहर रोजाना इसी तरह बड़े पैमाने पर अभिभावक खड़े दिख जाएंगे. सभी की कोशिश होती है कि किसी तरह प्रिंसिपल को मना लिया जाए और उनके बच्चों की पढ़ाई दोबारा शुरू हो जाए. सोमवार से ही मुंबई के स्कूल खुल चुके हैं, लेकिन ऐसे बच्चों को अब तक ऑनलाइन क्लास में नहीं जोड़ा गया है, जो फीस नहीं भर पाए हैं.
ट्रांसपोर्ट कारोबार से जुड़े दीपक सालवी का बेटा इसी स्कूल में पढ़ता है. अब तक यह स्कूल की शुरुआत में ही सालभर की फीस भर दिया करते थे, लेकिन डेढ़ साल से कारोबार ठप है, जिसका असर इनकी जेब पर पड़ा है. बामुश्किल घर चला पा रहे हैं. फीस भरना फिलहाल मुमकिन नहीं है. उदय अहिरे की कहानी भी ऐसी ही है. यह ड्राइवर का काम करते हैं और कड़ी मेहनत कर अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं. अब तक सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन
दीपक सालवी ने कहा, 'हम लोग फीस भरने के लिए मना नहीं कर रहे हैं, हम भरेंगे लेकिन फिलहाल हम सब परेशान हैं. हमारी नौकरियां गई हैं, हमारे पास जॉब नहीं है. बच्चों की पढ़ाई रोक कर आप फीस भरने कह रहे हैं, यह बहुत गलत बात है.'
उदय अहिरे ने इस बारे में कहा, 'हम लोगों की परिस्थिति बहुत खराब है. मेरी मां का एक साल से कैंसर का इलाज चल रहा था. 9 तारीख को उनका देहांत हो गया. इसकी वजह से मुझे बहुत दिक्कत हो गई. मैंने उनको बहुत रिक्वेस्ट किया, लेकिन वो बोले कि हमारे हाथ बंधे हुए हैं, हमें ऊपर से आर्डर आता है, दादर से. वो जो कहते हैं, वही हम करते हैं.'
रीना प्रजापति कहती हैं, 'आज का बच्चा कल का भविष्य है. इनको यह नहीं दिख रहा, इन्हें केवल अपना तिजोरी भरनी है.' मुंबई के मालवणी इलाके के इस छोटे से घर में रहने वाली सारा सय्यद के दो बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते थे. सारा शादियों में जाकर मेहंदी लगाने का काम करती थीं, लेकिन डेढ़ साल से काम न के बराबर है. लोगों से राशन मांगकर घर चला रही हैं. जिस स्कूल में इनके बच्चे पढ़ते थे, वहां पिछले साल यह फीस नहीं भर पाई. इन्होंने स्कूल से थोड़े दिन की मोहलत मांगी, लेकिन हुआ कुछ नहीं. अपनी आर्थिक परिस्थितियों के कारण इन्होंने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल दिया.